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अर्पण
जीवन को भगवान् के प्रति अर्पित पुष्प की भांति खिलना चाहिये ।
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भगवान् को किया गया अर्पण ही एकमात्र अर्पण है जो मनुष्य को सचमुच समृद्ध बनाता है ।
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अर्पण : रूपान्तर के लिए अपनी सम्पूर्ण सत्ता को, उसकी सभी सच्ची और मिथ्या, अच्छी और बुरी, उचित या अनुचित क्रियाओं के साथ भगवान् के सामने रखना ।
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अपने अन्धकारों को सच्ची निष्कपटता के साथ भगवान् को समर्पित कर दो और तुम प्रकाश पाने के योग्य बन जाओगे ।
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हम भगवान् के आगे अपनी सत्ता का जो अर्पण करें, वह समग्र और प्रभावकारी होना चाहिये । २४ अगस्त, १९५४
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सम्पूर्ण अर्पण : सिद्धि का सबसे अधिक निश्चित मार्ग ।
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अप्रतिबन्ध सम्पूर्ण अर्पण : बदले में कुछ भी मांगे बिना अपने-आपको देने का आनन्द । *
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